History In Bilara
बिलाड़ा का इतिहास (History of Bilara)
BILARA : बिलाड़ा अति प्राचीन नगरी है परन्तु इसकी स्थापना एवं इसके विकास, वैभव व्यवस्था संबंधी किसी भी प्रकार का लिखित दस्तावेज या साहित्य अभी तक उपलब्ध नही हो सका | लेकिन कुछ वयोवृद्ध एवं विज्ञ नागरिकों ने अपने -अपने मत प्रकट किये जो वर्षो से सुने -सुनाये जाते रहे हैं| ये मत कई किवदन्तियो पर आधरित है |
बिलाड़ा का प्राचीन नाम बलिपुर कहा जाता हैं जो आगे चलकर बिलाड़ा के नाम से प्रसिद्ध हुआ | हालाँकि किसी भी दस्तावेज अथवा इतिहास की पुस्तकों में इसका लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं |
पहले मत के अनुसार
एक मत : के अनुसार बिलाड़ा का सम्बध दैत्यराज राजा बलि से हैं |बताते है की राजा बलि का यहाँ राज्य था | उसने पिचियाक में बहुत बड़ा यज्ञ किया जिसके प्रमाण में बताते है कि एक स्थान पर यज्ञ के लिए सैकड़ो मण घी एकत्र किया गया था |उस स्थान को आज भी “घी तलाई “के रूप में जानते है और उस स्थान पर “घी “के साक्ष्य पाए जाते है |इस यज्ञ के बाद राजा बलि का मन भंग करने के लिए भगवान बावन रूप धर कर आये और “तीन पग “जमीन का दान राजा बलि द्वारा मांगा गया, जो राजा बलि ने दिया तब भगवान ने अपने विराट कदमो से ढाई कदम में बलि का समस्त राज्य नाप लिया और राजा बलि से आधा कदम भूमि और मांगी तब राजा बलि ने इस आधा कदम भूमि के बदले अपना शरीर अर्पण कर दिया और भगवान ने अपना तीसरा कदम राजा बलि के सिर पर रख कर उसे पाताल पहुचा दिया |आज भी पिचियाक में राजा बलि का प्राचीन मन्दिर बना हुआ है और सरगरा समाज इनकी पूजा करते | पिचियाक के भाखरी पर राजा बलि द्वारा किये गये विशाल यज्ञ की यज्ञवेदी के अवशेष भी मिलते हैं |
ऐसा भी मत हैं की जब राजा बलि ने यज्ञ किया तो पानी की व्यवस्था के लिए उसने अपना बाण चला कर पाताल से पानी निकाला जिसको आज भी बाणगंगा के नाम से तीर्थ स्थल के रूप में पहचाना जाता हैं | कुछ वर्षों पहलें भूमि से स्वत :ही जल की धारा इतनी प्रचुर मात्रा में बहती थी कि इस पानी से भावी ,बाला ,लम्बा, मालकोसनी आदि गाँव के खेतों की सिंचाई होती थीं |
दुसरे मत के अनुसार
दूसरा मत : यह हैं कि विरोचन नामक राजा का यहाँ राज्य था और उसके निधन के बाद उसकी नौ रानिया बाण गंगा पर सती हुई थी | जिसके नाम से हर वर्ष चैत्र की अमावस्या को मेला भरता है | नौ सती का मेला कहा जाता रहा |जिसे अब नाम बदल कर गंगामाई का मेला कहा जाता है |
तीसरे मत के अनुसार : कल्पवृक्ष
तीसरा मत : कुछ लोग बताते हैं कि राजा बलि के यज्ञ से प्रसन्न हो कर भगवान ने बिलाड़ा में स्वर्ग से कल्पवृक्ष भेजा | जो आज भी बिलाड़ा के पूर्व दिशा में स्थित हैं |
चौथे मत के अनुसार
चौथा मत : कुछ लोंगों का मत हैं कि राजा हर्षवर्धन का यहाँ राज्य रहा | यह बिलाड़ा के पूर्व में आज भी हर्ष गाँव स्थित हैं | तथा उसी काल में राजा हर्षवर्धन ने “हर्षा देवल ” नामक शिव मंदिर बनवाया जो आज भी प्राचीन अवशेष के रूप में विद्यमान हैं |
एक मत यह है :की यहाँ के शिव मन्दिर का निर्माण सम्वत ११३३ बगडावत सवाई भोज ने करवाया था |
एक मत यह भी हैं कि “हर्षा देवल” हर्षा नामक रानी या राजकुमारी ने भगवान शिव का यह विशाल मंदिर बनवाया |
नाथ द्वारा : बिलाड़ा
नाथद्वारा : बिलाड़ा के दक्षिण दिशा में “नाथद्वारा” नामक प्राचीन स्थान हैं जहाँ पर सन्तों की समाधियां हैं और प्राचीन शिव मंदिर हैं जिसके जीर्णोद्धार का कार्य चल रहा हैं | इस स्थान के बारे में एक मान्यता यह हैं कि उदयपुर के पास श्री नाथद्वारा में विराजित श्री नाथ जी की मूर्ति को जब नाथद्वारा ले जाया जा रहा था तो उस मूर्ति को यहाँ रात्रि विश्राम करवाया गया जिससे इसका नाम “नाथद्वारा” पड़ा |
दूसरा मत : यह हैं कि यह नाथ संप्रदाय का जाग्रत स्थान रहा हैं | और यहाँ गुरु गोरखनाथ के कालखंड से निरंतर यहाँ नाथ सम्प्रदाय के साधुसंत रहते हैं | यहाँ कुछ संतों की जीवित समाधियां भी हैं ऐसा बताते हैं |